Sunday, 26 August 2012

अवगुणांचे हाती। आहे अवघीच फजीती॥


अवगुणांचे हाती। आहे अवघीच फजीती॥
नाही पात्रासवे चाड। प्रमाण ते फिके गोड॥
विष तांब्या वाटी। भरली लाऊ नये होटी॥
तुका म्हणे भाव। शुद्ध बरा सोंग वाव॥

अवगुणों के हातों ही हम फँस जाते हैं।
धातू अच्छा है या बुरा ये देखने की आवश्यकता नाहीं, उसके अंदर का रस अच्छा है या त्याज्य है यह महत्त्वपूर्ण है।
एक तांबे की कटोरी विष से भरी है। तांबा अच्छा हो तब भी उसमें रखे विष को होठों से नहीं लगाना चाहिए।
तुका कहे भाव शुद्ध हो यही अच्छा है, स्वाँग रचना योग्य नहीं।  

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