Tuesday 21 August 2012

सुखे वोळंबा दावी गोहा। माझे दु:ख नेणा पाहा॥


सुखे वोळंबा दावी गोहा। माझे दु:ख नेणा पाहा॥
आवडीचा मारिला वेडा। होय होय कैसा म्हणे भिडा॥
अखंड मज पोटाची व्यथा। दुधभात साकर तूप पथ्या॥
दो प्रहरा मज लहरी येती। शुद्ध नाही पडे सुपत्ती॥
नीज नये खाली घाली फुले। जवळी न साहती मुले॥
अंगी चंदन लाविते भाळी। सदा शूळ माझे कपाळी॥
निपट मज न चले अन्न। पायली गहू सांजा तीन॥
गेले वारी तुम्ही आणिली साकर। सात दिवस गेली साडेदाहा शेर॥
हाड गळोनि आले मांस। माझे दु:ख तुम्हा नेणवे कैसे॥
तुका म्हणे जिता गाढव केला। मेलियावरि नरका नेला॥


एक स्त्री है तो सुखी किंतु अपने पती के सामने नाटक करती है।
कहती है कि आप मेरा दु:ख कहाँ समझते हैं, नाही देखते हैं।
पती उसके पीछा दीवाना है, डर के मारे उसकी हर बात पर हाँ, हाँ कहता है।
आप सुनते नहीं मेरे पेट में सदैव दर्द रहता है – दूध, चाँवल, चीनी और घी ही मुझे पुसाते हैं।
दोप्रहर को मुझे नींद सी आ जाती है और मैं बिस्तर में बेहोश हो जाती हूँ।
रोज मैं अपने शरीर पर और भाल पर चंदन का लेप करती हूँ।
मुझे नींद नहीं आती है इसलिए बिस्तर में फूल फैला देती हूँ।
देखते नहीं, मेरी हड्डीयाँ गल गई हैं और केवल मांस ही रह गया है फिर भी मेरा दु:ख आप नहीं देखते।
आपने पिछली बार साडेदस सेर चीनी लाई थी वह सात दिन में खत्म हो गई।
आप तो जानते हैं की मुझे अन्न बिल्कुल नहीं चलता बस तीन बार मिलकर थोडासा गेहूं का शीरा लगता है केवल ।
तुका कहे जिसका जीतेजी गधा हो गया हो वह मरने पर नर्क ही जाएगा।

No comments:

Post a Comment