Thursday 23 August 2012

जेविले ते संत मागे उष्टावळी। अवघ्या पत्रावळी करुनी झाडा॥


जेविले ते संत मागे उष्टावळी। अवघ्या पत्रावळी करुनी झाडा॥
सोंवळ्या ओंवळ्या राहिलो निराळा। पासूनि सकळा अवघ्या दूरी॥
परें परतें मज न लगे सांगावें। हें तो बरे देवे शिकविले॥
दुसर्‍याते आम्ही नाही आतळत। जाणोनि संकेत उभा असे॥
येथे काही कोणी न धरावी शंका। मज चाड एका भोजनाची॥
लांचावला तुका मारितसे झड। पुरविले कोड नारायणे॥

जो संत मुझसे पहले खा चुके हैं उनके पत्तलों को झटक कर जो अन्न मिला वही मैंने खाया।
हर प्रकार की छूताछूत से मैं अलग हो गया हूँ।
परावाणी से भी परे जो तत्त्व है वह अब मुझसे ना कहें क्योंकि देवने मुझे उत्तम सीख दी है।

हम कोई दूसरा मानते ही नहीं, यही हमारी पहचान है।

इस पर कोई शंका ना करे।
मुझे केवल अब एकही भोजन की इच्छा है।

उस भोजन के लिए ललचाया तुका वह मिलते ही उसपर झपटा और इसे देख नारायण मेरी इच्छा पूर्ण करते हैं।

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