Wednesday 31 October 2012

विष्णुमय जग वैष्णवांचा धर्म। भेदाभेद-भ्रम अमंगळ॥


विष्णुमय जग वैष्णवांचा धर्म। भेदाभेद-भ्रम अमंगळ॥
आइका जी तुम्ही भक्त भागवत। कराल ते हित सत्य करा॥
कोणाही जीवाचा न घडावा मत्सर। वर्म सर्वेश्वरपूजनाचे॥
तुका म्हणे एका देहाचे अवयव। सुखदु:ख जीव भोग पावे॥
सारा जगत विष्णुमय है ये मानना ही वैष्णवों का धर्म है।
भेदाभेद, मतविचार ये सब केवल अमंगल भ्रम हैं।
सुनिए भागवत भक्तों, जो हित करना हो वो सत्य करो।
किसी भी जीव का मत्सर न करें। यही सर्वेश्वरपूजन का वर्म है।
तुका कहे, ज्ञानेंद्रीय, कर्मेंद्रीय एक ही देह के अवयव हैं और उनके द्वारा विषयों के सुखदु:ख के भोग को भोगने वाला अंतर में एकही जीव है।

Monday 29 October 2012

दुजे खंडे तरी। उरला तो अवघा हरि।


दुजे खंडे तरी। उरला तो अवघा हरि। आपणाबाहेरी। नलगे ठाव धुंडावा॥
इतुले जाणावया जाणा। कोड तरी मने मना। पारधीच्या खुणा। जाणतेणेचि साधाव्या॥
देह आधी काय खरा। देहसंबंधपसारा। बुजगावणे चोरा। रक्षणसे भासते॥
तुका करी जागा। नको वासंपू वाउगा। आहेसि तू अंगा। अंगी उघडी डोळा॥


द्वैत जब समाप्त हो जाता है तब अवशेष रहता है हरि। उसे ढूंढने के लिए अपने बाहर जाने की आवश्यकता नहीं। इतना ही जानना हो अगर तो मन से मन को जानना। शिकारी का फैलाया जाल जिस प्रकार एक शिकारी ही पहचानता है। पहले तो देह सत्य नहीं। फिर देह संबंधी स्त्री, पुत्र इत्यादी कैसे सत्य होंगे? खेत में खडा हौआ जैसे चोरों को डराकर खेतकी रक्षा करता है वैसे ही यह देह है। तुका जगा रहा है, व्यर्थ घबराओ नहीं। यह शरीर परमात्मरूपी ही है, केवल अपने इस अंग की आत्मिक दृष्टी खोल कर देख।

Friday 19 October 2012

ब्रह्मादिक जया लाभासि ठेंगणें। बळिये आम्ही भले शरणागत॥


ब्रह्मादिक जया लाभासि ठेंगणें। बळिये आम्ही भले शरणागत॥
कामनेच्या त्यागे भजनाचा लाभ। झाला पद्मनाभ सेवाऋणी॥
कामधेनूचिया क्षीरा पार नाही। इच्छेचिये वाही वरुषावे॥
बैसलियेठयी लागले भरते। त्रिपुटीवरते भेदी ऐसे॥
हारि नाही आम्हा विष्णुदासा जगी। नारायण अंगी विसावला॥
तुका म्हणे बहु लाठे हे भोजन। नाही रिता कोण रहात राहो॥

जिस लाभ से ब्रह्मादिक भी वंचित हैं उसके सामने हम शरणागत अच्छे हैं। कामना के त्याग से हमें भजन का लाभ हुआ और उसकी वजह से पद्मनाभ हमारी सेवा का ऋणी हो गया। कामधेनू के दूध का अंत नहीं। इच्छा की तरह सदैव उसका दूध बहता रहता है। जहाँ हम बैठे हैं वहीं हमारा हृदय भर आया है। हम विष्णुदासों की दुनिया में पराजय संभव नहीं क्योंकि हमारे भीतर नारायण स्थिर है। तुका कहे, ये भोजन बडा बलशाली है, यहाँ कोई खाली पेट नहीं रहता।