Friday 19 October 2012

ब्रह्मादिक जया लाभासि ठेंगणें। बळिये आम्ही भले शरणागत॥


ब्रह्मादिक जया लाभासि ठेंगणें। बळिये आम्ही भले शरणागत॥
कामनेच्या त्यागे भजनाचा लाभ। झाला पद्मनाभ सेवाऋणी॥
कामधेनूचिया क्षीरा पार नाही। इच्छेचिये वाही वरुषावे॥
बैसलियेठयी लागले भरते। त्रिपुटीवरते भेदी ऐसे॥
हारि नाही आम्हा विष्णुदासा जगी। नारायण अंगी विसावला॥
तुका म्हणे बहु लाठे हे भोजन। नाही रिता कोण रहात राहो॥

जिस लाभ से ब्रह्मादिक भी वंचित हैं उसके सामने हम शरणागत अच्छे हैं। कामना के त्याग से हमें भजन का लाभ हुआ और उसकी वजह से पद्मनाभ हमारी सेवा का ऋणी हो गया। कामधेनू के दूध का अंत नहीं। इच्छा की तरह सदैव उसका दूध बहता रहता है। जहाँ हम बैठे हैं वहीं हमारा हृदय भर आया है। हम विष्णुदासों की दुनिया में पराजय संभव नहीं क्योंकि हमारे भीतर नारायण स्थिर है। तुका कहे, ये भोजन बडा बलशाली है, यहाँ कोई खाली पेट नहीं रहता।

No comments:

Post a Comment