Tuesday 15 October 2013

सादगी पर उसकी मर जाने की हसरत दिल में है

सादगी पर उसकी मर जाने की हसरत दिल में है
बस नहीं चलता, कि फिर खंजर कफ-ए-कातिल में है

देखना तकरीर की लज्जत कि जो उसने कहा
मैंने यह जाना, कि गोया यह भी मेरे दिल में है

गरचे है किस किस बुराई से वले बा ईं हमः
जिक्र मेरा, मुझसे बेहतर है, कि उस महफिल में है

बस, हुजूम-ए--ना उमीदी, खाक में मिल जाएगी
यह जो इक लज्जत हमारी सअि-ए-बे हासिल में है

रँज-ए-रह क्यों खींचिए, वामान्दगी को अिश्क है
उठ नहीं सकता हमारा जो कदम मंजिल में है

जल्वः जार-ए-आतश-ए-दोजख हमारा दिल सही
फितन-ए-शोर-ए-कयामत, किसकी आब-ओ-गिल में है

है दिल-ए-शोरीद-ए-गालिब तिलिस्म-ए-पेच-ओ-ताब
रहम कर अपनी तमन्ना पर कि किस मुश्किल में है

सादगी - सरलता, भोलापन
हसरत - अभिलाषा
कफ-ए-कातिल - कातिल (माशूक) के हाथ में
तकरीर - भाषण, वार्ता
लज्जत - मजा, स्वाद, आनंद
गोया - जैसे की, मानो की
वले बा ईं हमः - लेकिन इन सब के बावजूद
हुजूम-ए-नाउमीदी - निराशा का समूह
सअि-ए-बेहासिल - निष्फल प्रयत्न
रँज-ए-रह खेंचना - पथ के दुख उठाना
वामान्दगी - थकन, श्रांति
जल्व जार-ए-आतश-ए-दोजख - नरकाग्नि से भरा हुआ
फितन-ए-शोरीद-ए-गालिब - गालिब का उन्मन और व्याकुल हृदय
तिलिस्म-ए-पेच-ओ-ताब - दुख और व्याकुलता का जादूगर
http://www.youtube.com/watch?v=eIVp4_QKOQk

Saturday 12 October 2013

कब वह सुनता है कहानी मेरी

कब वह सुनता है कहानी मेरी
और फिर वह भी जबानी मेरी

खलिश-ए-गमजः-ए-खूँरेज न पूछ
देख खूँनाबः फिशानी मेरी

क्या बयाँ करके मिरा, रोयेंगे यार
मगर आशुफ्तः बयानी मेरी

हँू जिखुद रफ्तः-ए-बैदा-ए-खयाल
भूल जाना है, निशानी मेरी

मुतकाबिल है, मुकाबिल मेरा
रुक गया, देख रवानी मेरी

कद्र-ए-सँग-ए-सर-ए-रह रखता हूँ
सख्त अरजाँ है, गिरानी मेरी

गर्द बाद-ए-रह-ए-बेताबी हूँ
सरसर-ए-शौक है, बानी मेरी

दहन उसका, जो न मालूम हुआ
खुल गई हेच मदानी मेरी

कर दिया जोफ ने आजिज गालिब
नँग-ए-पीरी है, जवानी मेरी

खलिश-ए-गमजः-ए-खूँरेज = रक्तप्रवाही कटाक्ष की चुभन। 
खूँनाबः फिशानी = रक्त का प्रभाव, खून का बहाव।
जिखुद रफ्तः-ए-बैदा-ए-खयाल = (जिखुद रफ्त = खोया हुआ। बैदा - सहरा, जंगल) कल्पना के वन में खोया हुआ।
मुतकाबिल = विमुख, जो सामना न कर सके
मुकाबिल = सम्मुख, सामना करनेवाला
रवानी = प्रभाव, धार, तेजी, वेग।
कद्र-ए-सँग-ए-सर-ए-रह = पथ में पडे रोडे का मूल्य
सख्त अरजाँ = बहुत सस्ती
गिरानी = बहुमूल्याता, महँगापन, भारीपन
गर्द बाद-ए-रह-ए-बेताबी = व्याकुलता की राह का बगूला (वातचक्र)
सरसर-ए-शौक = शोक की आँधी
बानी = प्रवर्तक, संस्थापक
दहन = मुँह 
हेच मदानी = अनभिज्ञता
जोफ = निर्बलता
आजिज = विवश, मजबूर
नँग-ए-पीरी = बुढापे को लज्जित करनेवाली

http://www.youtube.com/watch?v=wWj6jAm46RE 

Friday 14 June 2013

Bulleshah says जिस तन लगिआ इश्क कमाल

जिस तन लगिआ इश्क कमाल,
नाचे बेसुर ते बेताल।

दरदमन्द नूं कोई ने छेडे
जिसने आपे दु:ख सहेडे
जम्मणा जीणा मूल उखेडे
बूझे अपणा आप खिआल।
जिसने वेस इश्क दा कीता
धुर दरबारों फतवा लीता
जदों हजूरों प्याला पीता
कुछ ना रह्या जवाब सवाल।
जिसदे अन्दर वस्स्या यार
उठिया यार ओ यार पुकार
ना ओह चाहे राग न तार
ऐंवे बैठा खेडे हाल।
बुल्ल्हिआ शौह नगर सच पाया
झूठा रौला सब्ब मुकाया
सच्चियां कारण सच्च सुणाया
पाया उसदा पाक जमाल।


जिसे प्रभु से पूर्ण प्रेम हो जाता है वह आनन्दमय मस्ती में आकर बेसुर और बेताल नाचने लगता है।
उस वेदना-भरे जीव को कोई क्या तंग करेगा, जिसने स्वयं अपने लिए दुख संजो लिये हैं। दुखों को वरण करने वाला जन्म और मरण को उखाड फेंकता है और वह अपनी हस्ती को स्वयं पहचान्न लेता है।
जिसने प्रभु-प्रेम को जीवनाधार बना लिया है, उसे स्वयं आदिसत्ता से आदेश प्राप्त होने लगते हैं। जब स्वयं आदिसत्ता के हाथ से प्रेम का प्याला पिया हो तो उस अवस्था में किसी प्रकार के दुविधा के लिए स्थान ही नहीं रहता।
जिसके हृदय के अन्दर उसका यार बस जाता है, तो वह आपा भूलकर यार-ही-यार पुकार उठता है। जब रोम-रोम में प्रिय की ध्वनि गूंजने लगे, तब फिर किसी बाहरी राग अथवा ताल की चाह ही नहीं रह जाती और वह अनायास मिलन-सुख में डूबकर नाचने लगता है।

बुल्लेशाह कहता है कि प्रिय के नगर में ही सच प्राप्त होता है। प्रियतम के नगर को देखने के बाद तो संसार के सारे झूठे शोर समाप्त हो जाते हैं। यह परम सत्य मैंने उन लोगों के लिए कहा है, जो सच्चे हैं, और जिन्हें उसके परम प्रेममय पवित्र रूप सौंदर्य का दर्शन हो चुका है। 

Saturday 18 May 2013

बस कर जी, हुण बस कर जी


बस कर जी, हुण बस कर जी
काई गल असां नाल हस कर जी।
तुसीं दिल मेरे विच वसदे सी
तद सानूं दूर क्यों दसदे सी
घत जादू दिल नूं खसदे सी
हुण आइओ मेरे वस कर जी।
तुसी मोइआं नूं मार ना मुकदे सी
नित्त खिद्दो वांगूं  कुटदे सी
गल करदे सां गल घुटदे सी
हुण तीर लगाइओ कस कर जी।
तुसीं छपदे हो, असां पकडे हो
असां विच्च जिगर दे जकडे हो
तुसीं अजे छपण नूं तकडे हो
हुण रह पिंजर विच वस कर जी।
बुल्हा शौह असीं तेरे बरदे हां
तेरा मुख वेखण नूं मरदा हां
बन्दी वांगूं मिनतां करदे हां
हुण कित वल जासो नस कर जी।


विरहिणी आत्मा विरह, दुख सहते-सहते दुखियाकर कहती है कि बस करो जी, अब बस करो। नाराजी छोडकर हमसे हँस हँसकर कोई बात करो।
यों तो तुम सदा मेरे हृदय में वास करते रहे, किंतु कहते यही रहे कि हम दूर हैं। जादू डालकर दिल छीन लेने वाले अब जाकर कहीं मेरे वश में आये हो।
तुम इतने निर्दयी कैसे हो कि मरे हुए को भी मारते रहे और तुम्हारा मारना तो कभी समाप्त न हुआ। कपडे की कतरनों से बने गेंद की तरह हमें पीटते रहे। हम बात करना चाहते हैं, तो तुम गला घोंटकर हमें चुप करा देतेहो और अबकी बार तो तुमने हम पर कसकर बाण चलाया है।
तुम छुपना चाहते हो, लेकिन हमने तुम्हें पकड लिया है। पकड ही नहीं लिया, बल्कि हमने तुम्हे जी-जान से जकड लिया है। हम जानते हैं कि तुम बहुत बलवान हो, अभी भी भागकर छुप सकते हो, लेकिन अब तो हमारे अस्थि-पंजर में ही रहो।
बुल्ला कहता है कि हे प्राणपति, हम तो तुम्हारे परम दास हैं, तुम्हारा मुख देखने के लिए तरस रहे हैं, बन्दी की तरह अनुनय-विनय कर रहे हैं, इस विनय के सामने भला अब दौडकर किधर जाओगे? 

तोबा मत कर यार, कैसी तोबा है


तोबा मत कर यार, कैसी तोबा है?
नित पढ दे इस्तगफार कैसी तोबा है।
मूंहों तोबा दिलों न करदा
इस तोबा थीं तरक न फडदा
किस गफलत न पाइओ परदा
तैनूं बख्शे क्यों गफ्फार।
सावीं दे के लवें सवाये
डिओढिआँ तक बाजी लाये
मुसलमानी ओह कित्त्थों पाये
जिसदा होवे इह किरदार।
जित न जाणा ओत्त्थे जावें
हक बेगाना मुक्कर खावें
कूड किताबां सिर ते चावे
होवे कीह तेरा इतबार।
जालम जुलमों नाहीं डर दे
अपणी कीतियों आपे मर दे
नाही खौफ खुदा दा कर दे
ऐथे ओत्त्थे होण खवार।

http://www.youtube.com/watch?v=_j-cM176PQk

जब तक व्यक्ति अन्दर से पश्चात्ताप नहीं करता तो केवल शाब्दिक पश्चात्ताप सर्वथा निरर्थक है। यही भाव इस काफी में व्यक्त करते हुए कहा गया है कि मेरे प्यारे, शाब्दिक तौबा मत करो। ऐसी तौबा से क्या लाभ? तुम प्रतिदिन बार-बार इफ्तगार (तौबा, क्षमा) कहते हो, इससे भला क्या होगा?

दिखावे की तौबा करने वालों की चर्चा करते हुए साईं जी कहते हैं कि मुंह से तो तुम तौबा करते हो, लेकिन दिल से तौबा नहीं करते। मौखिक रूप से भले ही तुम तौबा करते हो, किंतु जो चीजें तुम्हें छोड देनी चाहिए, उनको त्यागते नहीं। न जाने तुम्हारे मन पर किस लापरवाही का परदा पडा है। ऐसी हलत में भला क्षमाशील भगवान तुम्हें क्यों क्षमा करें।

मुंह से तौबा कहते हुए भी जो बराबर देकर उसके बदले में उसका सवाया प्राप्त करता है और ड्योढा वसूल करने पर नजर है। जिसका चलन ऐसा हो  उसे सच्चे मुसलमान की गति कैसे प्राप्त हो सकती है।

तौबा करने के साथ यदि व्यक्ति जिधर जाना नहीं चाहिए, उधर ही जाता है, बेगानी वस्तु बिना अधिकार के लूटकर खा जाता है और धर्म ग्रंथों की झूठी कसमें खाता है। ऐसे हालत में तुम पर भरोसा क्यों किया जाए?

जालिम लोग निस्संकोच जुल्म करते रहते हैं, उन्हें अंतत: अपने ही कुकर्मों का दुष्परिणाम भुगतना पडता है, उन्हें ईश्वर का भी भय नहीं।  ऐसे लोग इस लोक में तो दुख पाते हैं, परलोक में भी दुख पाते हैं।

Friday 17 May 2013

रांझा रांझा करदी हुण मैं आपे रांझा होई।


रांझा रांझा करदी हुण मैं आपे रांझा होई।
सद्दी मैनूं धीदो रांझा हीर न आखो कोई।
रांझा मैं विच, मैं रांझे विच गैर खिआल न कोई
मैं नाहीं ओह आप है अपणी आप करे दिलजोई
जो कुछ साडे अन्दर वस्से जात असाडी सोई
जिस दे नाल मैं न्योंह लगाया ओही जैसी होई
चिट्टी चादर लाह सुट कुडिये, पहन फकीरां दी लोई
चिट्टी चादर दाग लगेसी, लोई दाग न कोई
तख्त हजारे लै चल बुल्ल्हिआ, स्याली मिले न ढोई
रांझा रांझा करदी हुण मैं आपे रांझा होई।


मुर्शिद (सद्गुरु) परमात्मा-स्वरूप होता है। मुर्शिद में अभेदता परमात्मा की अभेदता में बदल जाती है। इस अभेदता मे6 शिष्य अपना अस्तित्व ही भूल जाता है। सद्गुरू की आत्मा के रंग में रंग जाने की अवस्था का वर्णन इस काफी में करते हुए कहा गया है कि ‘रांझा-रांझा’ कहती कहती मैं स्वयं ही रांझा हो गई हूँ। अब मुझे सब कोई ‘रांझा’ के नाम से पुकारो। मुझे हीर न कहो।
अब तो एकात्म-अभेद की स्थिति यह कि रांझा मेरे अन्दर है, मैं रांझे के अन्दर हूँ और हम एक-दूसरे से अलग नहीं हैं। अब मैं तो रह ही नहीं गई, जो कुछ भी है, वह स्वयं ही है और आत्म-आनन्द की तुष्टि के लिए वही अपनी दिलजोई स्वयं करता है।
जो हमारे अन्दर बस रहा है, अब तो वही हमारी जात है। अब तो हालत यह है कि जिसके साथ हमने प्रेम किया है, हम उसी जैसे हो गए हैं।
अरी लडकी, उतार फेंक यह सफेद चादर और पहन ले फकीरों की लोई। सफेद चादर में तो दाग लग जाएगा, लेकिन फकीरी लोई में कोई दाग नहीं लगता।
बुल्लेशाह कहते हैं कि हमें तख्त हजारे, यानि रांझे के गाँव, ले चलो, क्योंकि स्याल, यानि हीर के गाँव में, हमारा ठिकाना नहीं है, क्योंकि रांझा रांझा कहती-कहती, मैं स्वयं रांझा हो गई हूँ। 

Monday 13 May 2013

Bulleshah says पत्तियां लिखां मैं शाम नूं मैनूं पिया नजर ना आये।




पत्तियां लिखां मैं शाम नूं मैनूं पिया नजर ना आये।
आंगन बना डरावना कित विधि रैण विहावे।
पांधे पंडित जगत के मैं पूछ रही आं सारे।
पोथी, वेद क्या दोस है जो उलटे भाग हमारे।
भाइया वे जोतिषिया, इक सच्ची बात भी कहियो।
जे मैं हीनी भाग दी, तुम चुप ना रहियो।
भज सक्का ते भज्ज जावां, सभ तज के करां फकीरी।
पर दुलडी, तिलडी, चौलडी, है गल विच प्रेम जंजीरी।
नींद गई किस देस नुं, ओह भी बैरन मेरी।
मत सुफने विच आन मिले, ओह नींदर केह्डी।
रो रो जीउ बलांदिया गम करदी आं दूणा।
नैनों नीर भी ना चल्लण किस कीता टूणा।
साजन तुमरी प्रीत से मुझको हाथ की आया।
छतर सूलां सिर झालिया पर तेरा पंथ न पाया।
प्रेम नगर चल वस्सिये जित्त्थे वस्से कंत हमारा।
बुल्ल्हिआ शौह तों मंगनी हां जे दे नजारा।




प्रियतम के वियोग से पागल विरहिणी की व्यथा और मानसिक अवस्था क बडा ही स्वाभाविक और मर्मिक चित्रण करने वाली इस काफी में कहा गया है कि मैं हर दिन प्रतीक्षा करते-करते सांझ को अपने प्रिय को पत्र लिखती हूँ, लेकिन वह सलोना पिया दिखाई ही नहीं देता। मेरे लिए तो मेरे घर का आँगन भी डरावना बन गया है, भला मैं अकेली ही रात कैसे गुजारूं।
पत्र लिखकर हृदय से लगा लेती हूँ और आँखों में आँसूं भर-भर आते हैं। विरह की अग्नि मे मैं जल रही हूँ और उस अग्नि में मेरा हृदय फूँका जा रहा है। संसार-भर के पंडितों-ज्ञानियों से मैं पूछ रही हूँ कि अरे कोई मेरा दोष तो बता दो या मेरा भाग्य ही उलटा है।
हे ज्योतिषी भाई, तुम मेरी भाग्य-रेखा बताकर सच्ची-सच्ची बात बता दो। अगर मैं सचमुच हीनभाग्य हूँ, तो चुप मत लगा जाना, साफ-साफ बता देना।

यदि मैं भाग सकती, तो भाग निकली होती और सब-कुछ त्यागकर फकीरी वेश अपना लिया होता। लेकिन मैं भाग भी तो  नहीं सकती, क्योंकि प्रेम की दुहरी, तिहरी, चौहरी जंजीर मेरे गले में पडी है। जो गिरफ्तार है, वह कैसे भाग सकता है।

Saturday 4 May 2013

Bulleshah says तुहिओं हैं मैं नाही वे सजणा,


तुहिओं हैं मैं नाही वे सजणा,
तुहिओं हैं मैं नाहीं।
खोले दे परछावें वांगूं
घुम रिहा मन माहीं।
जे बोलां तूं नाले बोलें
चुप रह्वां मन माहीं।
जै सौवा तूं नाले सौवें
जे तुरां तू राहीं।
बुल्लिहा शौह घर आया मेरे
जिंदडी घोल घुमाई।




आध्यात्म की उच्च अवस्था में जब साधक का अहं मिट जाता है, तो उसे सर्वत्र प्रभु ही दिखते हैं। आपा नष्ट होने की अवस्था मे6 वह पुकारकर कहता है कि प्रिय, सभी कहीं तुम ही तुम हो। मैं नहीं होँ। तुम मेरे मन में इस प्रकार घूम रहे हो, जैसे किसी खंडहर में परछाईं घूमती है।
तदाकारिता की स्थिति यह है कि यदि मैं बोलती हूँ तो तुम मेरे साथ बोलतेहो, मैं चाहूँ तो भी मन के भीतर चुप नहीं रह सकती। जब मैं सो जाती हूँ, तो तुम मेरे साथ हो, जब मैं चलती हूँ तब भी तुम ही राह में मेरे साथ होते हो।
बुल्लेशाह कहता है कि पति-परमेश्वर मेरे घर आया हुआ है और मैंने तन-मन-प्राण सब-कुछ उस पर न्यौचावर कर दिया। 

Bulleshah says की बेदर्दां के संग यारी।


की बेदर्दां के संग यारी।
रोवण अखियां जारो-जारी।
सानूं गये बदेर्दीं छड के
सीने सांग हिजर दी गड के
जिस्मों जिंद नू लै गये कढ के
एह हाल कर गये हैं सियारी।
बेदर्दां दा की भरवासा
खौफ नहीं दिल अन्दर मासा
चिडिया मरन गंवारा हासा
मगरों हस-हस ताडी मारी।


आवण कह गये फेर न आये
आवण दे सब कौल भुलाये
मैं भुल्ली भुल नैण लगाये
कहे मिले सानूं ठग ब्योपारी।
प्रियतम को बदर्दी ठहराते हुए कहा गया है कि वह प्रीति लगाकर प्रेमिका को विरह की अग्नि में जलने के लिए छोड गया है। वह बेचारी दुखिया बनकर कहती है कि कैसे बदर्दी से प्रीति लगी है, जो आँखों से आँसूं थमते ही नहीं।
प्रीति लगाकर कठोर होकर हमें छोडकर चले गए हैं और कलेजे में गाड गए विरह का भाला। देह में से प्राण निकालकर ले गए हैं। हाय, वे यह कैसी हृदयहीनता कर गए हैं।
भला ऐसे निर्मम लोगों का क्या भरोसा? उनके हृदय में ईश्वर क रत्ती-भर भय नहीं। चिडियाँ मर जाएँ तो गँवार हँसते हैं और हँसने के बाद उपहास-भरी तालियाँ बजाते हैं।
वे कह तो यह गए थे कि हम अवश्य लौट आयँगे किंतु अभी तक लौटी नहीं। यही नहीं, उन्होंने तो लौट आने के सभी वचन भुला दिए। असल में चूक मुझसे ही हुई, जो भूलमें उनसे नयन लगा बैठी। कैसे ठग व्यापारी मिले थे मुझे। 

Monday 29 April 2013

Bulleshah says इक अलफ पढो छुटकारा ए।


इक अलफ पढो छुटकारा ए।

इक अलफों दो तीन चार होए
फिर लख करोड हजार होए
फिर ओथों बाझ शुमार होए
हिक अलफ दा नुकता न्यारा ए।

क्यों पढना ए गड्ड किताबां दी
सिर चाना एं पंड अजाबां दी
हुण होइउ शकल जलादां दी
अग्गे पैंडा मुश्कल मारा ए

बण हाफिज हिफज कुरान करें
पढ-पढ के साफ जबान करें
फिर निअमत वल्ल ध्यान करें
मन फिरदा ज्यों हलकारा ए

बुल्लाह बी बोहड या बोया सी
ओह बिरछा वड्डा जां होया सी
जद बिरछ ओह फानी होया सी
फिर रह गया बीज अकाश ए
http://www.youtube.com/edit?video_id=xjiGEwu_j1Y&ns=1


एक अलिफ (अल्ला) का नाम लो, इसी मुक्ति है, निजात है। अरबी-फारसी वर्णमाला में अल्लाह लिखें, तो पहला अक्षर अलिफ है, जो आकार में एक ‘परमात्मा’ के समान है। उसी एक से दो-तीन-चार हुए यानी सृष्टि की उत्पत्ति हुई। उनसे फिर हजारों, लाखों और करोडों हुए, और फिर उन्ही से अगणित होते गए। इस प्रकार यह एक का नुक्ता कितना अद्वितीय है। क्यों पढते हो गाडी-भर किताबें, आखिर क्यों पढते हो और सिर पर क्यों उठते हो गठडी दुखों की। बहुत पढ लेने के बाद तुम्हरी शक्ल जल्लाद-सी हो गई है। मौत के बाद तुम्हे दुर्गम घाटी में से गुजरना होगा।

हाफिज बनकर कुरान शरीफ हिफ्ज (कंठस्थ) कर ली और बार-बार पढ कर जबान भी रवां कर ली। उसके आगे हुआ यह कि दुनिया की नेमतों की ओर ध्यान देने लगे और मन हरकारे की तरह चहुं ओर दौडने लगा।

बुल्लेशाह कहता है कि कभी वटवृक्ष-सा यह संसार बोया गया था और कालक्रम में यह वटवृक्ष बडा होता गया। जब यह वृक्ष नष्ट हो जाएगा, तो जो कुछ बाकी बचेगा वह बीज-रूप में आकाररहित अल्ला होगा। संसार-रूपी वृक्ष नष्ट होने पर बीज-रूप में निराकार परमात्मा ही विद्यमान होता है। इसी प्रकार शरीर नष्ट होने पर आत्मा नष्ट नहीं होती। अत: एक अल्ला का नाम लो। इसी में मुक्ति (निजात) है।

Bulleshah says उलटे होर जमाने आये


उलटे होर जमाने आये
तां मैं भेद सजण दे पाये।
कां लगडां नूं मारन लग्गे।
चिडियां जुर्रे ढाये।
घोडे चुगण अरूडियां उत्ते।
गद्दों खवेद पवाये।
आपणियां विच उलफत नाहीं।
क्या चाचे क्या ताये।
पिओ पुत्तरां इतफाक न काई।
धीआं नाल न माये।
सचिआं नूं पए धक्के मिलदे।
झूठे कोल बहाये।
अगले हो कंगाले बैठे।
पिछलिआं फरश बिछाये।
भूरियां वाले राजे कीते।
राजिआं भीख मंगाये।
बुल्ल्हिआ हुकम हजूरों आया।
तिस नूं कौण हटाये।

जमाने में न जाने कैसे सदाचारिक तथा नैतिक परिवर्तन आया है कि कुछ और ही तरह का वक्त आ गया है। उस बदलाव से शायद प्रभु की इच्छा जुडी हुई है। इसी में मैंने प्रिय प्रभु का भेद जाना।
जमाने की उलटी चाल का हाल यह है कि कौए बाजों को मारने लगे हैं। चिडियों ने बाज को चित कर दिया है। घोडे गन्दगी के ढेर पर चुग रहे हैं और गधों को हरे खेत में छोड दिया गया है।
लोगों में आपसी प्रेम-सद्भाव इतना खत्म हो गया है कि अपनों में प्रेम नहीं रहा। चाचे-ताऊ तक प्यार से खाली हैं। पिता-पुत्रों के बीच एकता नहीं रही और मां का भी बेटियों के साथ प्यार नहीं रह गहा है।
जो सच्चेहैं, उन्हें धक्के दिए जा रहे हैं और झूठों को पास बैठाया जा रहा है। जो अगली कतार में थे अर्थात खुशहाल थे, वे कंगाल हो गए हैं, जो पिछली कतारे में थे, वे कालीन बिछाकर शानो-शौकत से बैठे हैं।
भूरे ओढ हुए गरीब लोग राजे बन बैठे हैं और राजे भीख मांगने पर मजबूर हैं। बुल्ला कहता है कि इन सबका हुकम (आदेश) स्वयं खुदा ने जारी किया है, तब इसे कौन टाल सकता है। 

Bulleshah says अब तो जाग मुसाफर प्यारे


अब तो जाग मुसाफर प्यारे
रैन गई लटके सब तारे।
आवागौन सराईं डेरे
साथ तिआर मुसाफर तेरे
अजे न सुणिओं कूच नगारे।
कर लै अज करनी दा बेरा
मुड ना हो सी आवण तेरा
साथी चल्लो पुकारे।
मोती, चूनी, पारस, पासे,
पास समुन्दर मरो पिआसे
खोल्ह आक्खीं उठ बौह बेकारे।
बुल्ल्हा शौह दे पैरीं पदिये
गफलत छोड कुझा हीला करिये
मिरग जतन बिन खेत उजाडे।


प्यारे मुसाफिर अब तो जाग जा। रात बीत गई है और सभी तारे लटक चुके हैं (छुप चुके हैं)। जीवन तो आना और जाना है। इस संसार में रहना सराय यानि मुसाफिरखाने में टिकने जैसा है। तेरे साथ और भी कई मुसाफिर चलने के लिए तैयार बैठे हैं. क्या तूने अभी तक कूच-नक्कारों की आवाज नहीं सुनी?
तेरा यह समय कुछ कर डालने का समय है, इसलिए उत्तम करनी कर ले। तुझे यहां दोबारा आने का अवसर नहीं मिलेगा। तेरे साथी बार-बार पुकारकर कह रह हैं कि ‘चलो, चलो’। चलने के समय अर्थात मृत्यु आने पर मोती, अन्न, या पारसमणि सब पडे रह जाएंगे, तेरे किसी काम न आएंगे, जैसे पास ही समुद्र हो, किंतु प्यासे के किसी काम न आए। अरे निकम्मे, अब भी आँखें खोल ले। बुल्लेशाह कहते हैं, शौह, प्रिय, पति, परमात्मा के चरणों में खुद को डाल ले, गफलत (ऊंघ, लापरवाही) छोडकर भले काम के लिए कुछ उद्यम कर। यदि तू सावधान रहकर यत्न नहीं करेगा, तो मायामृग तेरे खेत को उजाड जाएगा।