Saturday 18 May 2013

तोबा मत कर यार, कैसी तोबा है


तोबा मत कर यार, कैसी तोबा है?
नित पढ दे इस्तगफार कैसी तोबा है।
मूंहों तोबा दिलों न करदा
इस तोबा थीं तरक न फडदा
किस गफलत न पाइओ परदा
तैनूं बख्शे क्यों गफ्फार।
सावीं दे के लवें सवाये
डिओढिआँ तक बाजी लाये
मुसलमानी ओह कित्त्थों पाये
जिसदा होवे इह किरदार।
जित न जाणा ओत्त्थे जावें
हक बेगाना मुक्कर खावें
कूड किताबां सिर ते चावे
होवे कीह तेरा इतबार।
जालम जुलमों नाहीं डर दे
अपणी कीतियों आपे मर दे
नाही खौफ खुदा दा कर दे
ऐथे ओत्त्थे होण खवार।

http://www.youtube.com/watch?v=_j-cM176PQk

जब तक व्यक्ति अन्दर से पश्चात्ताप नहीं करता तो केवल शाब्दिक पश्चात्ताप सर्वथा निरर्थक है। यही भाव इस काफी में व्यक्त करते हुए कहा गया है कि मेरे प्यारे, शाब्दिक तौबा मत करो। ऐसी तौबा से क्या लाभ? तुम प्रतिदिन बार-बार इफ्तगार (तौबा, क्षमा) कहते हो, इससे भला क्या होगा?

दिखावे की तौबा करने वालों की चर्चा करते हुए साईं जी कहते हैं कि मुंह से तो तुम तौबा करते हो, लेकिन दिल से तौबा नहीं करते। मौखिक रूप से भले ही तुम तौबा करते हो, किंतु जो चीजें तुम्हें छोड देनी चाहिए, उनको त्यागते नहीं। न जाने तुम्हारे मन पर किस लापरवाही का परदा पडा है। ऐसी हलत में भला क्षमाशील भगवान तुम्हें क्यों क्षमा करें।

मुंह से तौबा कहते हुए भी जो बराबर देकर उसके बदले में उसका सवाया प्राप्त करता है और ड्योढा वसूल करने पर नजर है। जिसका चलन ऐसा हो  उसे सच्चे मुसलमान की गति कैसे प्राप्त हो सकती है।

तौबा करने के साथ यदि व्यक्ति जिधर जाना नहीं चाहिए, उधर ही जाता है, बेगानी वस्तु बिना अधिकार के लूटकर खा जाता है और धर्म ग्रंथों की झूठी कसमें खाता है। ऐसे हालत में तुम पर भरोसा क्यों किया जाए?

जालिम लोग निस्संकोच जुल्म करते रहते हैं, उन्हें अंतत: अपने ही कुकर्मों का दुष्परिणाम भुगतना पडता है, उन्हें ईश्वर का भी भय नहीं।  ऐसे लोग इस लोक में तो दुख पाते हैं, परलोक में भी दुख पाते हैं।

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