Monday 29 April 2013

Bulleshah says इक अलफ पढो छुटकारा ए।


इक अलफ पढो छुटकारा ए।

इक अलफों दो तीन चार होए
फिर लख करोड हजार होए
फिर ओथों बाझ शुमार होए
हिक अलफ दा नुकता न्यारा ए।

क्यों पढना ए गड्ड किताबां दी
सिर चाना एं पंड अजाबां दी
हुण होइउ शकल जलादां दी
अग्गे पैंडा मुश्कल मारा ए

बण हाफिज हिफज कुरान करें
पढ-पढ के साफ जबान करें
फिर निअमत वल्ल ध्यान करें
मन फिरदा ज्यों हलकारा ए

बुल्लाह बी बोहड या बोया सी
ओह बिरछा वड्डा जां होया सी
जद बिरछ ओह फानी होया सी
फिर रह गया बीज अकाश ए
http://www.youtube.com/edit?video_id=xjiGEwu_j1Y&ns=1


एक अलिफ (अल्ला) का नाम लो, इसी मुक्ति है, निजात है। अरबी-फारसी वर्णमाला में अल्लाह लिखें, तो पहला अक्षर अलिफ है, जो आकार में एक ‘परमात्मा’ के समान है। उसी एक से दो-तीन-चार हुए यानी सृष्टि की उत्पत्ति हुई। उनसे फिर हजारों, लाखों और करोडों हुए, और फिर उन्ही से अगणित होते गए। इस प्रकार यह एक का नुक्ता कितना अद्वितीय है। क्यों पढते हो गाडी-भर किताबें, आखिर क्यों पढते हो और सिर पर क्यों उठते हो गठडी दुखों की। बहुत पढ लेने के बाद तुम्हरी शक्ल जल्लाद-सी हो गई है। मौत के बाद तुम्हे दुर्गम घाटी में से गुजरना होगा।

हाफिज बनकर कुरान शरीफ हिफ्ज (कंठस्थ) कर ली और बार-बार पढ कर जबान भी रवां कर ली। उसके आगे हुआ यह कि दुनिया की नेमतों की ओर ध्यान देने लगे और मन हरकारे की तरह चहुं ओर दौडने लगा।

बुल्लेशाह कहता है कि कभी वटवृक्ष-सा यह संसार बोया गया था और कालक्रम में यह वटवृक्ष बडा होता गया। जब यह वृक्ष नष्ट हो जाएगा, तो जो कुछ बाकी बचेगा वह बीज-रूप में आकाररहित अल्ला होगा। संसार-रूपी वृक्ष नष्ट होने पर बीज-रूप में निराकार परमात्मा ही विद्यमान होता है। इसी प्रकार शरीर नष्ट होने पर आत्मा नष्ट नहीं होती। अत: एक अल्ला का नाम लो। इसी में मुक्ति (निजात) है।

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