Monday 29 April 2013

Bulleshah says अब तो जाग मुसाफर प्यारे


अब तो जाग मुसाफर प्यारे
रैन गई लटके सब तारे।
आवागौन सराईं डेरे
साथ तिआर मुसाफर तेरे
अजे न सुणिओं कूच नगारे।
कर लै अज करनी दा बेरा
मुड ना हो सी आवण तेरा
साथी चल्लो पुकारे।
मोती, चूनी, पारस, पासे,
पास समुन्दर मरो पिआसे
खोल्ह आक्खीं उठ बौह बेकारे।
बुल्ल्हा शौह दे पैरीं पदिये
गफलत छोड कुझा हीला करिये
मिरग जतन बिन खेत उजाडे।


प्यारे मुसाफिर अब तो जाग जा। रात बीत गई है और सभी तारे लटक चुके हैं (छुप चुके हैं)। जीवन तो आना और जाना है। इस संसार में रहना सराय यानि मुसाफिरखाने में टिकने जैसा है। तेरे साथ और भी कई मुसाफिर चलने के लिए तैयार बैठे हैं. क्या तूने अभी तक कूच-नक्कारों की आवाज नहीं सुनी?
तेरा यह समय कुछ कर डालने का समय है, इसलिए उत्तम करनी कर ले। तुझे यहां दोबारा आने का अवसर नहीं मिलेगा। तेरे साथी बार-बार पुकारकर कह रह हैं कि ‘चलो, चलो’। चलने के समय अर्थात मृत्यु आने पर मोती, अन्न, या पारसमणि सब पडे रह जाएंगे, तेरे किसी काम न आएंगे, जैसे पास ही समुद्र हो, किंतु प्यासे के किसी काम न आए। अरे निकम्मे, अब भी आँखें खोल ले। बुल्लेशाह कहते हैं, शौह, प्रिय, पति, परमात्मा के चरणों में खुद को डाल ले, गफलत (ऊंघ, लापरवाही) छोडकर भले काम के लिए कुछ उद्यम कर। यदि तू सावधान रहकर यत्न नहीं करेगा, तो मायामृग तेरे खेत को उजाड जाएगा। 

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