Friday 24 August 2012

देवाच्या प्रसादे करा रे भोजन। व्हाल कोण कोण अधिकारी ते॥


देवाच्या प्रसादे करा रे भोजन। व्हाल कोण कोण अधिकारी ते॥
ब्रह्मादिकांसि हे दुर्लभ उच्छिष्ट। नका मानू वीट ब्रह्मरसी॥
अवघियापुरते वोसंडले पात्र। अधिकार सर्वत्र आहे येथे॥
इच्छादानी येथे ओळला समर्थ। अवघेचि आर्त पुरवितो॥
सरे येथे ऐसे नाही कदाकाळी। पुढती वाटे कवळी घ्यावी ऐसे॥
तुका म्हणे पाक लक्षुमीच्या हाते। कामारी सांगाते निरुपम॥


जो अधिकारी हैं ऐसोने देव का प्रसाद सेवन करना चाहिए।
ये जूठन ब्रह्मादिकों को भी नहीं प्राप्त होती इसलिए इस दुर्लभ ब्रह्मरस सेवन को परेशानी ना समझें।
ये रस उमड उमड कर बह रहा है और इसे ग्रहण करने का अधिकार सबको बराबर का है।
इसे देनेवाला दाता ऐसा है की इसकी जिसे इच्छा हो उसे ये प्राप्त हो जाता है फिर किसी की इच्छा अपूर्ण रहे ऐसा नहीं हो सकता।
ये रस ऐसा है की कभी समाप्त नहीं होता और एक बार इसका सेवन करें तो बार बार सेवन करने की इच्छा होती है।
तुका कहे ये अन्न लक्ष्मी माता के हातों से ग्रहण करना चाहिए। 

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