Tuesday, 21 August 2012

पुढे गेले त्याचा शोधीत मारग। चला जाऊ माग घेत आम्ही॥


पुढे गेले त्याचा शोधीत मारग। चला जाऊ माग घेत आम्ही॥
वंदूं चरणरज सेवूं उष्टावळी। पूर्वकर्मा होळी करुनीया॥
अमुप हे गाठी बांधू भांडवल। अनाथा विठ्ठल आम्हा जोगा॥
अवघे होती लाभ एका या चिंतनें। नामसंकीर्तनें गोविंदाच्या॥
जन्ममरणाच्या खुंटतील खेपा। होईल हा सोपा सिद्ध पंथ॥
तुका म्हणे घालू जीवपणा चिरा। जाऊ त्या माहेरा निजाचिया॥

जो आगे गया उसका मार्ग ढूँढते हम चलें।
उसके पैरों की चरण धूल और जूठन का सेवन करें।
हम अनाथों के लिए विठ्ठल है इसलिए यह पूंजी हमें मिली है।
क्योंकी इसी गोविंद के चिंतन से, नामसंकीर्तन से संपूर्ण लाभ होता है।
और जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है और हम सिद्धि को प्राप्त होते हैं।
तुका कहे, चलो अपने जीवन पर पत्थर रखकर अपने मायके जाएँ सुखकी नींद सोने॥

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