अंतरींची घेतो गोडी। पाहे जोडी भावाची। देव सोयरा सोयरा। देव सोयरा दीनाचा।
आपुल्याच वैभवे। शृंगारावे निर्मळे। तुका म्हणे जेवी सवे। प्रेम द्यावे प्रीतीचे।।
अपने अंतर की मिठास वो ग्रहण करता है। उसमें बसे भाव का संचय कितना है उसे
परखता है।
देव हमारा संबंधी है। अपने वैभव से हमारा निर्मल शृंगार करता है ।
तुका कहे वह हमारे साथ उपभोग लेता है और हमे बदले में उसकी प्रीती देता है।
राम कृष्ण हरि!
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