की बेदर्दां के संग यारी।
रोवण अखियां जारो-जारी।
सानूं गये बदेर्दीं छड के
सीने सांग हिजर दी गड के
जिस्मों जिंद नू लै गये कढ के
एह हाल कर गये हैं सियारी।
बेदर्दां दा की भरवासा
खौफ नहीं दिल अन्दर मासा
चिडिया मरन गंवारा हासा
मगरों हस-हस ताडी मारी।
आवण कह गये फेर न आये
आवण दे सब कौल भुलाये
मैं भुल्ली भुल नैण लगाये
कहे मिले सानूं ठग ब्योपारी।
प्रियतम को बदर्दी ठहराते हुए कहा गया है
कि वह प्रीति लगाकर प्रेमिका को विरह की अग्नि में जलने के लिए छोड गया है। वह
बेचारी दुखिया बनकर कहती है कि कैसे बदर्दी से प्रीति लगी है, जो आँखों से आँसूं
थमते ही नहीं।
प्रीति लगाकर कठोर होकर हमें छोडकर चले गए
हैं और कलेजे में गाड गए विरह का भाला। देह में से प्राण निकालकर ले गए हैं। हाय,
वे यह कैसी हृदयहीनता कर गए हैं।
भला ऐसे निर्मम लोगों का क्या भरोसा? उनके
हृदय में ईश्वर क रत्ती-भर भय नहीं। चिडियाँ मर जाएँ तो गँवार हँसते हैं और हँसने
के बाद उपहास-भरी तालियाँ बजाते हैं।
वे कह तो यह गए थे कि हम अवश्य लौट आयँगे किंतु अभी
तक लौटी नहीं। यही नहीं, उन्होंने तो लौट आने के सभी वचन भुला दिए। असल में चूक
मुझसे ही हुई, जो भूलमें उनसे नयन लगा बैठी। कैसे ठग व्यापारी मिले थे मुझे।
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