इक अलफ पढो छुटकारा
ए।
इक अलफों दो तीन
चार होए
फिर लख करोड हजार
होए
फिर ओथों बाझ शुमार
होए
हिक अलफ दा नुकता
न्यारा ए।
क्यों पढना ए गड्ड
किताबां दी
सिर चाना एं पंड
अजाबां दी
हुण होइउ शकल
जलादां दी
अग्गे पैंडा मुश्कल
मारा ए
बण हाफिज हिफज
कुरान करें
पढ-पढ के साफ जबान
करें
फिर निअमत वल्ल
ध्यान करें
मन फिरदा ज्यों
हलकारा ए
बुल्लाह बी बोहड या
बोया सी
ओह बिरछा वड्डा जां
होया सी
जद बिरछ ओह फानी
होया सी
फिर रह गया बीज
अकाश ए
http://www.youtube.com/edit?video_id=xjiGEwu_j1Y&ns=1एक अलिफ (अल्ला) का नाम लो, इसी मुक्ति है, निजात है। अरबी-फारसी वर्णमाला में अल्लाह लिखें, तो पहला अक्षर अलिफ है, जो आकार में एक ‘परमात्मा’ के समान है। उसी एक से दो-तीन-चार हुए यानी सृष्टि की उत्पत्ति हुई। उनसे फिर हजारों, लाखों और करोडों हुए, और फिर उन्ही से अगणित होते गए। इस प्रकार यह एक का नुक्ता कितना अद्वितीय है। क्यों पढते हो गाडी-भर किताबें, आखिर क्यों पढते हो और सिर पर क्यों उठते हो गठडी दुखों की। बहुत पढ लेने के बाद तुम्हरी शक्ल जल्लाद-सी हो गई है। मौत के बाद तुम्हे दुर्गम घाटी में से गुजरना होगा।
No comments:
Post a Comment