उलटे होर जमाने आये
तां मैं भेद सजण दे
पाये।
कां लगडां नूं मारन
लग्गे।
चिडियां जुर्रे
ढाये।
घोडे चुगण अरूडियां
उत्ते।
गद्दों खवेद पवाये।
आपणियां विच उलफत
नाहीं।
क्या चाचे क्या
ताये।
पिओ पुत्तरां इतफाक
न काई।
धीआं नाल न माये।
सचिआं नूं पए धक्के
मिलदे।
झूठे कोल बहाये।
अगले हो कंगाले
बैठे।
पिछलिआं फरश
बिछाये।
भूरियां वाले राजे
कीते।
राजिआं भीख मंगाये।
बुल्ल्हिआ हुकम
हजूरों आया।
तिस नूं कौण हटाये।
जमाने में न जाने
कैसे सदाचारिक तथा नैतिक परिवर्तन आया है कि कुछ और ही तरह का वक्त आ गया है। उस
बदलाव से शायद प्रभु की इच्छा जुडी हुई है। इसी में मैंने प्रिय प्रभु का भेद
जाना।
जमाने की उलटी चाल
का हाल यह है कि कौए बाजों को मारने लगे हैं। चिडियों ने बाज को चित कर दिया है।
घोडे गन्दगी के ढेर पर चुग रहे हैं और गधों को हरे खेत में छोड दिया गया है।
लोगों में आपसी प्रेम-सद्भाव
इतना खत्म हो गया है कि अपनों में प्रेम नहीं रहा। चाचे-ताऊ तक प्यार से खाली हैं।
पिता-पुत्रों के बीच एकता नहीं रही और मां का भी बेटियों के साथ प्यार नहीं रह गहा
है।
जो सच्चेहैं,
उन्हें धक्के दिए जा रहे हैं और झूठों को पास बैठाया जा रहा है। जो अगली कतार में
थे अर्थात खुशहाल थे, वे कंगाल हो गए हैं, जो पिछली कतारे में थे, वे कालीन बिछाकर
शानो-शौकत से बैठे हैं।
भूरे ओढ हुए गरीब
लोग राजे बन बैठे हैं और राजे भीख मांगने पर मजबूर हैं। बुल्ला कहता है कि इन सबका
हुकम (आदेश) स्वयं खुदा ने जारी किया है, तब इसे कौन टाल सकता है।
No comments:
Post a Comment