तुहिओं हैं मैं नाही वे सजणा,
तुहिओं हैं मैं नाहीं।
खोले दे परछावें वांगूं
घुम रिहा मन माहीं।
जे बोलां तूं नाले बोलें
चुप रह्वां मन माहीं।
जै सौवा तूं नाले सौवें
जे तुरां तू राहीं।
बुल्लिहा शौह घर आया मेरे
जिंदडी घोल घुमाई।
आध्यात्म की उच्च अवस्था में जब साधक का
अहं मिट जाता है, तो उसे सर्वत्र प्रभु ही दिखते हैं। आपा नष्ट होने की अवस्था मे6
वह पुकारकर कहता है कि प्रिय, सभी कहीं तुम ही तुम हो। मैं नहीं होँ। तुम मेरे मन
में इस प्रकार घूम रहे हो, जैसे किसी खंडहर में परछाईं घूमती है।
तदाकारिता की स्थिति यह है कि यदि मैं
बोलती हूँ तो तुम मेरे साथ बोलतेहो, मैं चाहूँ तो भी मन के भीतर चुप नहीं रह सकती।
जब मैं सो जाती हूँ, तो तुम मेरे साथ हो, जब मैं चलती हूँ तब भी तुम ही राह में
मेरे साथ होते हो।
बुल्लेशाह कहता है कि पति-परमेश्वर मेरे
घर आया हुआ है और मैंने तन-मन-प्राण सब-कुछ उस पर न्यौचावर कर दिया।
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