Saturday, 18 May 2013

बस कर जी, हुण बस कर जी


बस कर जी, हुण बस कर जी
काई गल असां नाल हस कर जी।
तुसीं दिल मेरे विच वसदे सी
तद सानूं दूर क्यों दसदे सी
घत जादू दिल नूं खसदे सी
हुण आइओ मेरे वस कर जी।
तुसी मोइआं नूं मार ना मुकदे सी
नित्त खिद्दो वांगूं  कुटदे सी
गल करदे सां गल घुटदे सी
हुण तीर लगाइओ कस कर जी।
तुसीं छपदे हो, असां पकडे हो
असां विच्च जिगर दे जकडे हो
तुसीं अजे छपण नूं तकडे हो
हुण रह पिंजर विच वस कर जी।
बुल्हा शौह असीं तेरे बरदे हां
तेरा मुख वेखण नूं मरदा हां
बन्दी वांगूं मिनतां करदे हां
हुण कित वल जासो नस कर जी।


विरहिणी आत्मा विरह, दुख सहते-सहते दुखियाकर कहती है कि बस करो जी, अब बस करो। नाराजी छोडकर हमसे हँस हँसकर कोई बात करो।
यों तो तुम सदा मेरे हृदय में वास करते रहे, किंतु कहते यही रहे कि हम दूर हैं। जादू डालकर दिल छीन लेने वाले अब जाकर कहीं मेरे वश में आये हो।
तुम इतने निर्दयी कैसे हो कि मरे हुए को भी मारते रहे और तुम्हारा मारना तो कभी समाप्त न हुआ। कपडे की कतरनों से बने गेंद की तरह हमें पीटते रहे। हम बात करना चाहते हैं, तो तुम गला घोंटकर हमें चुप करा देतेहो और अबकी बार तो तुमने हम पर कसकर बाण चलाया है।
तुम छुपना चाहते हो, लेकिन हमने तुम्हें पकड लिया है। पकड ही नहीं लिया, बल्कि हमने तुम्हे जी-जान से जकड लिया है। हम जानते हैं कि तुम बहुत बलवान हो, अभी भी भागकर छुप सकते हो, लेकिन अब तो हमारे अस्थि-पंजर में ही रहो।
बुल्ला कहता है कि हे प्राणपति, हम तो तुम्हारे परम दास हैं, तुम्हारा मुख देखने के लिए तरस रहे हैं, बन्दी की तरह अनुनय-विनय कर रहे हैं, इस विनय के सामने भला अब दौडकर किधर जाओगे? 

तोबा मत कर यार, कैसी तोबा है


तोबा मत कर यार, कैसी तोबा है?
नित पढ दे इस्तगफार कैसी तोबा है।
मूंहों तोबा दिलों न करदा
इस तोबा थीं तरक न फडदा
किस गफलत न पाइओ परदा
तैनूं बख्शे क्यों गफ्फार।
सावीं दे के लवें सवाये
डिओढिआँ तक बाजी लाये
मुसलमानी ओह कित्त्थों पाये
जिसदा होवे इह किरदार।
जित न जाणा ओत्त्थे जावें
हक बेगाना मुक्कर खावें
कूड किताबां सिर ते चावे
होवे कीह तेरा इतबार।
जालम जुलमों नाहीं डर दे
अपणी कीतियों आपे मर दे
नाही खौफ खुदा दा कर दे
ऐथे ओत्त्थे होण खवार।

http://www.youtube.com/watch?v=_j-cM176PQk

जब तक व्यक्ति अन्दर से पश्चात्ताप नहीं करता तो केवल शाब्दिक पश्चात्ताप सर्वथा निरर्थक है। यही भाव इस काफी में व्यक्त करते हुए कहा गया है कि मेरे प्यारे, शाब्दिक तौबा मत करो। ऐसी तौबा से क्या लाभ? तुम प्रतिदिन बार-बार इफ्तगार (तौबा, क्षमा) कहते हो, इससे भला क्या होगा?

दिखावे की तौबा करने वालों की चर्चा करते हुए साईं जी कहते हैं कि मुंह से तो तुम तौबा करते हो, लेकिन दिल से तौबा नहीं करते। मौखिक रूप से भले ही तुम तौबा करते हो, किंतु जो चीजें तुम्हें छोड देनी चाहिए, उनको त्यागते नहीं। न जाने तुम्हारे मन पर किस लापरवाही का परदा पडा है। ऐसी हलत में भला क्षमाशील भगवान तुम्हें क्यों क्षमा करें।

मुंह से तौबा कहते हुए भी जो बराबर देकर उसके बदले में उसका सवाया प्राप्त करता है और ड्योढा वसूल करने पर नजर है। जिसका चलन ऐसा हो  उसे सच्चे मुसलमान की गति कैसे प्राप्त हो सकती है।

तौबा करने के साथ यदि व्यक्ति जिधर जाना नहीं चाहिए, उधर ही जाता है, बेगानी वस्तु बिना अधिकार के लूटकर खा जाता है और धर्म ग्रंथों की झूठी कसमें खाता है। ऐसे हालत में तुम पर भरोसा क्यों किया जाए?

जालिम लोग निस्संकोच जुल्म करते रहते हैं, उन्हें अंतत: अपने ही कुकर्मों का दुष्परिणाम भुगतना पडता है, उन्हें ईश्वर का भी भय नहीं।  ऐसे लोग इस लोक में तो दुख पाते हैं, परलोक में भी दुख पाते हैं।

Friday, 17 May 2013

रांझा रांझा करदी हुण मैं आपे रांझा होई।


रांझा रांझा करदी हुण मैं आपे रांझा होई।
सद्दी मैनूं धीदो रांझा हीर न आखो कोई।
रांझा मैं विच, मैं रांझे विच गैर खिआल न कोई
मैं नाहीं ओह आप है अपणी आप करे दिलजोई
जो कुछ साडे अन्दर वस्से जात असाडी सोई
जिस दे नाल मैं न्योंह लगाया ओही जैसी होई
चिट्टी चादर लाह सुट कुडिये, पहन फकीरां दी लोई
चिट्टी चादर दाग लगेसी, लोई दाग न कोई
तख्त हजारे लै चल बुल्ल्हिआ, स्याली मिले न ढोई
रांझा रांझा करदी हुण मैं आपे रांझा होई।


मुर्शिद (सद्गुरु) परमात्मा-स्वरूप होता है। मुर्शिद में अभेदता परमात्मा की अभेदता में बदल जाती है। इस अभेदता मे6 शिष्य अपना अस्तित्व ही भूल जाता है। सद्गुरू की आत्मा के रंग में रंग जाने की अवस्था का वर्णन इस काफी में करते हुए कहा गया है कि ‘रांझा-रांझा’ कहती कहती मैं स्वयं ही रांझा हो गई हूँ। अब मुझे सब कोई ‘रांझा’ के नाम से पुकारो। मुझे हीर न कहो।
अब तो एकात्म-अभेद की स्थिति यह कि रांझा मेरे अन्दर है, मैं रांझे के अन्दर हूँ और हम एक-दूसरे से अलग नहीं हैं। अब मैं तो रह ही नहीं गई, जो कुछ भी है, वह स्वयं ही है और आत्म-आनन्द की तुष्टि के लिए वही अपनी दिलजोई स्वयं करता है।
जो हमारे अन्दर बस रहा है, अब तो वही हमारी जात है। अब तो हालत यह है कि जिसके साथ हमने प्रेम किया है, हम उसी जैसे हो गए हैं।
अरी लडकी, उतार फेंक यह सफेद चादर और पहन ले फकीरों की लोई। सफेद चादर में तो दाग लग जाएगा, लेकिन फकीरी लोई में कोई दाग नहीं लगता।
बुल्लेशाह कहते हैं कि हमें तख्त हजारे, यानि रांझे के गाँव, ले चलो, क्योंकि स्याल, यानि हीर के गाँव में, हमारा ठिकाना नहीं है, क्योंकि रांझा रांझा कहती-कहती, मैं स्वयं रांझा हो गई हूँ। 

Monday, 13 May 2013

Bulleshah says पत्तियां लिखां मैं शाम नूं मैनूं पिया नजर ना आये।




पत्तियां लिखां मैं शाम नूं मैनूं पिया नजर ना आये।
आंगन बना डरावना कित विधि रैण विहावे।
पांधे पंडित जगत के मैं पूछ रही आं सारे।
पोथी, वेद क्या दोस है जो उलटे भाग हमारे।
भाइया वे जोतिषिया, इक सच्ची बात भी कहियो।
जे मैं हीनी भाग दी, तुम चुप ना रहियो।
भज सक्का ते भज्ज जावां, सभ तज के करां फकीरी।
पर दुलडी, तिलडी, चौलडी, है गल विच प्रेम जंजीरी।
नींद गई किस देस नुं, ओह भी बैरन मेरी।
मत सुफने विच आन मिले, ओह नींदर केह्डी।
रो रो जीउ बलांदिया गम करदी आं दूणा।
नैनों नीर भी ना चल्लण किस कीता टूणा।
साजन तुमरी प्रीत से मुझको हाथ की आया।
छतर सूलां सिर झालिया पर तेरा पंथ न पाया।
प्रेम नगर चल वस्सिये जित्त्थे वस्से कंत हमारा।
बुल्ल्हिआ शौह तों मंगनी हां जे दे नजारा।




प्रियतम के वियोग से पागल विरहिणी की व्यथा और मानसिक अवस्था क बडा ही स्वाभाविक और मर्मिक चित्रण करने वाली इस काफी में कहा गया है कि मैं हर दिन प्रतीक्षा करते-करते सांझ को अपने प्रिय को पत्र लिखती हूँ, लेकिन वह सलोना पिया दिखाई ही नहीं देता। मेरे लिए तो मेरे घर का आँगन भी डरावना बन गया है, भला मैं अकेली ही रात कैसे गुजारूं।
पत्र लिखकर हृदय से लगा लेती हूँ और आँखों में आँसूं भर-भर आते हैं। विरह की अग्नि मे मैं जल रही हूँ और उस अग्नि में मेरा हृदय फूँका जा रहा है। संसार-भर के पंडितों-ज्ञानियों से मैं पूछ रही हूँ कि अरे कोई मेरा दोष तो बता दो या मेरा भाग्य ही उलटा है।
हे ज्योतिषी भाई, तुम मेरी भाग्य-रेखा बताकर सच्ची-सच्ची बात बता दो। अगर मैं सचमुच हीनभाग्य हूँ, तो चुप मत लगा जाना, साफ-साफ बता देना।

यदि मैं भाग सकती, तो भाग निकली होती और सब-कुछ त्यागकर फकीरी वेश अपना लिया होता। लेकिन मैं भाग भी तो  नहीं सकती, क्योंकि प्रेम की दुहरी, तिहरी, चौहरी जंजीर मेरे गले में पडी है। जो गिरफ्तार है, वह कैसे भाग सकता है।

Saturday, 4 May 2013

Bulleshah says तुहिओं हैं मैं नाही वे सजणा,


तुहिओं हैं मैं नाही वे सजणा,
तुहिओं हैं मैं नाहीं।
खोले दे परछावें वांगूं
घुम रिहा मन माहीं।
जे बोलां तूं नाले बोलें
चुप रह्वां मन माहीं।
जै सौवा तूं नाले सौवें
जे तुरां तू राहीं।
बुल्लिहा शौह घर आया मेरे
जिंदडी घोल घुमाई।




आध्यात्म की उच्च अवस्था में जब साधक का अहं मिट जाता है, तो उसे सर्वत्र प्रभु ही दिखते हैं। आपा नष्ट होने की अवस्था मे6 वह पुकारकर कहता है कि प्रिय, सभी कहीं तुम ही तुम हो। मैं नहीं होँ। तुम मेरे मन में इस प्रकार घूम रहे हो, जैसे किसी खंडहर में परछाईं घूमती है।
तदाकारिता की स्थिति यह है कि यदि मैं बोलती हूँ तो तुम मेरे साथ बोलतेहो, मैं चाहूँ तो भी मन के भीतर चुप नहीं रह सकती। जब मैं सो जाती हूँ, तो तुम मेरे साथ हो, जब मैं चलती हूँ तब भी तुम ही राह में मेरे साथ होते हो।
बुल्लेशाह कहता है कि पति-परमेश्वर मेरे घर आया हुआ है और मैंने तन-मन-प्राण सब-कुछ उस पर न्यौचावर कर दिया। 

Bulleshah says की बेदर्दां के संग यारी।


की बेदर्दां के संग यारी।
रोवण अखियां जारो-जारी।
सानूं गये बदेर्दीं छड के
सीने सांग हिजर दी गड के
जिस्मों जिंद नू लै गये कढ के
एह हाल कर गये हैं सियारी।
बेदर्दां दा की भरवासा
खौफ नहीं दिल अन्दर मासा
चिडिया मरन गंवारा हासा
मगरों हस-हस ताडी मारी।


आवण कह गये फेर न आये
आवण दे सब कौल भुलाये
मैं भुल्ली भुल नैण लगाये
कहे मिले सानूं ठग ब्योपारी।
प्रियतम को बदर्दी ठहराते हुए कहा गया है कि वह प्रीति लगाकर प्रेमिका को विरह की अग्नि में जलने के लिए छोड गया है। वह बेचारी दुखिया बनकर कहती है कि कैसे बदर्दी से प्रीति लगी है, जो आँखों से आँसूं थमते ही नहीं।
प्रीति लगाकर कठोर होकर हमें छोडकर चले गए हैं और कलेजे में गाड गए विरह का भाला। देह में से प्राण निकालकर ले गए हैं। हाय, वे यह कैसी हृदयहीनता कर गए हैं।
भला ऐसे निर्मम लोगों का क्या भरोसा? उनके हृदय में ईश्वर क रत्ती-भर भय नहीं। चिडियाँ मर जाएँ तो गँवार हँसते हैं और हँसने के बाद उपहास-भरी तालियाँ बजाते हैं।
वे कह तो यह गए थे कि हम अवश्य लौट आयँगे किंतु अभी तक लौटी नहीं। यही नहीं, उन्होंने तो लौट आने के सभी वचन भुला दिए। असल में चूक मुझसे ही हुई, जो भूलमें उनसे नयन लगा बैठी। कैसे ठग व्यापारी मिले थे मुझे।