राजस सुकुमार
मदनाचा पुतळा। रविशशिकळा लोपलिया॥
कस्तुरी मळवट
चंदनाची उटी। रुळे माळ कंठी वैजयंती॥
मुगुट कुंडले
श्रीमुख शोभले। सुखाचे ओतिले सकळही॥
कासे सोनकळा
पांघरे पाटोळा। घननीळ सांवळा बाइयांनो॥
सकळही तुम्ही
व्हा गे एकीसवा। तुका म्हणे जीवा धीर नाही॥
राजस, सुकुमार मानो स्वयं मदन हो, जिसके तेज से सूर्य चंद्र का तेज भी लुप्त
हो जाए।
कस्तूरी चंदन का लेप माथेपर लगा है। कंठ में वैजयंती माला झूल रही है।
सुंदर मुख मस्तक पर रखे मुकुट और कानों में कुंडलों से सुशोभित है मानो सारा
सुख उस चेहरे में उतरा है।
कमर मे सोने की माला और शरीर सुंदर वस्त्रों से ढका है वो घन की तरह नीलवर्ण,
अरे स्त्रियों, हटो राह से और मुझे देखने दो क्योंकि तुका कहे, अब मैं अधीर हुआ।
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