गरुडाचे
वारिके कासे पितांबर। सांवळे मनोहर कैं देखेन॥
बरविया बरवंटा
घनमेघ सांवळा। वैजयंतीमाळा गळां शोभे॥
मुगुट माथा
कोटि सूर्याचा झल्लाळ। कौस्तुभ निर्मळ शोभे कंठी॥
वोतीव श्रीमुख
सुखाचे सकळ। वामांगी वेल्हाळ रखुमादेवी॥
उद्धव अक्रूर
उभे दोहींकडे। वर्णिती पवाडे सनकादिक॥
तुका म्हणे
नव्हे आणिकांसारिखा। तोचि माझा सखा पांडुरंग॥
गरुडरुपी घोडे
पर आरूढ, कमर में पीतांबर कसा हुआ, मन को हरने वाला शामसुंदर रूप मैं कब देखूँगा? सबसे
उत्तम, मेघ की तरह श्याम, गले में वैजयंती माला शोभायमान है, मस्तक पर कोटीसूर्य
के तेज से चमक रहा मुकुट है और गले में निर्मल कौस्तुभ शोभायमान है, ऐसा श्रीमुख
जिसमें मानों सारे सुखों का रस उडेल दिया हो, और जिसकी बाईं ओर रखुमादेवी हैं, एक
तरफ उद्धव और अक्रूर खडे हैं और सनकादी जिनका गुणवर्णन कर रहे हैं – तुका कहे जो
किसी और के जैसा नहीं वही मेरा सखा पांडुरंग है।