राम भगति अनियाले तीर ।
जेहि लागै सो जानैं पीर ।।
तन महिं खोजौं चोट न पावौं। ओषद मूरि कहां घंसि लावौं।
एक भाइ दीसैं सब नारी। नां जांनीं को पियहिं पियारी ।।
कहै कबीर जाकै मस्तकि भाग। सभ परिहरि ताकौं मिलै सुहाग।।
http://www.youtube.com/edit?o=U&video_id=1j-pOhLZU4c
राम की भक्ति किसी तीर की चुभन की तरह है जो जिसे लगता है वही समझता है। हम चोट खोजते हैं तो औषध कहाँ लगाएँ समझ में नहीं आता। जब सभी नारियाँ एक जैसी दिखती हों तब पिया की (परमेश्वर की) प्यारी कौन है यह कैसे समझ में आएगा? कबीर कहते हैं सुहागन केवल वह है जिसकी मांग में भाग है, सिंदूर लगा है।
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