कब वह सुनता है कहानी मेरी
http://www.youtube.com/watch?v=wWj6jAm46RE
और फिर वह भी जबानी मेरी
खलिश-ए-गमजः-ए-खूँरेज न पूछ
देख खूँनाबः फिशानी मेरी
क्या बयाँ करके मिरा, रोयेंगे यार
मगर आशुफ्तः बयानी मेरी
हँू जिखुद रफ्तः-ए-बैदा-ए-खयाल
भूल जाना है, निशानी मेरी
मुतकाबिल है, मुकाबिल मेरा
रुक गया, देख रवानी मेरी
कद्र-ए-सँग-ए-सर-ए-रह रखता हूँ
सख्त अरजाँ है, गिरानी मेरी
गर्द बाद-ए-रह-ए-बेताबी हूँ
सरसर-ए-शौक है, बानी मेरी
दहन उसका, जो न मालूम हुआ
खुल गई हेच मदानी मेरी
कर दिया जोफ ने आजिज गालिब
नँग-ए-पीरी है, जवानी मेरी
खलिश-ए-गमजः-ए-खूँरेज = रक्तप्रवाही कटाक्ष की चुभन।
खूँनाबः फिशानी = रक्त का प्रभाव, खून का बहाव।
जिखुद रफ्तः-ए-बैदा-ए-खयाल = (जिखुद रफ्त = खोया हुआ। बैदा - सहरा, जंगल) कल्पना के वन में खोया हुआ।
मुतकाबिल = विमुख, जो सामना न कर सके
मुकाबिल = सम्मुख, सामना करनेवाला
रवानी = प्रभाव, धार, तेजी, वेग।
कद्र-ए-सँग-ए-सर-ए-रह = पथ में पडे रोडे का मूल्य
सख्त अरजाँ = बहुत सस्ती
गिरानी = बहुमूल्याता, महँगापन, भारीपन
गर्द बाद-ए-रह-ए-बेताबी = व्याकुलता की राह का बगूला (वातचक्र)
सरसर-ए-शौक = शोक की आँधी
बानी = प्रवर्तक, संस्थापक
दहन = मुँह
हेच मदानी = अनभिज्ञता
जोफ = निर्बलता
आजिज = विवश, मजबूर
नँग-ए-पीरी = बुढापे को लज्जित करनेवाली
http://www.youtube.com/watch?v=wWj6jAm46RE
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