विष्णुमय जग
वैष्णवांचा धर्म। भेदाभेद-भ्रम अमंगळ॥
आइका जी
तुम्ही भक्त भागवत। कराल ते हित सत्य करा॥
कोणाही जीवाचा
न घडावा मत्सर। वर्म सर्वेश्वरपूजनाचे॥
तुका म्हणे
एका देहाचे अवयव। सुखदु:ख जीव भोग पावे॥
सारा जगत
विष्णुमय है ये मानना ही वैष्णवों का धर्म है।
भेदाभेद,
मतविचार ये सब केवल अमंगल भ्रम हैं।
सुनिए भागवत
भक्तों, जो हित करना हो वो सत्य करो।
किसी भी जीव
का मत्सर न करें। यही सर्वेश्वरपूजन का वर्म है।
तुका कहे,
ज्ञानेंद्रीय, कर्मेंद्रीय एक ही देह के अवयव हैं और उनके द्वारा विषयों के
सुखदु:ख के भोग को भोगने वाला अंतर में एकही जीव है।